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अभय रत्तसार।
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खरतर गच्छ भाण ॥ तास पसायमें शीतल जिन थुण्या रे, विबुध क्षमा कल्याण ॥ ११॥ भ० ॥
॥श्रीधरमनाथ स्वामी का स्तवन ॥ हारे हूं तो भरवा गइथी तट जमुनाके तीर जो॥ ए चाल ॥
हारे मारे धरम जिनंदसं लागी पूरण प्रोत जो, जीवड़लो ललचाणो जिनजीनी उलगे रे लो॥ हारे मुने थास्यै कोइयक समें प्रभु सुप्रसन्न जो, वातडली तव थास्यै महारी सबि वगेरे लो॥१॥ हारे कोइ दुर्जननो भंभेस्यो माहरो नाथ जो, उलवस्यै नही क्यारे कीधी चाकरी रे लो॥ हारे मारे स्वामी सरिखो कुण छै दुनियां मांह जो, जइये रे जिम तेहने घर आस्या करी रे लो॥ २ ॥ हारे मारे जस सेव्यांथी स्वारथनी नही सिद्ध जो, ठाली रे सी करवी तेहथी गोठ डी रे लो ॥ हारे कांइ झुठं खाई ते मिठाईने माटे जो, क्यांही रे परमारथनी नही प्रीतड़ी रे लो ॥३॥ हारे प्रभु अंतरजांमी जीवत प्राणाधार
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