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जयवीयराय सूत्र । ११ जराजंति उवसामं ॥२॥ चिट्टउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ । नर-तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्खदोगच्चं ॥३॥ तुह सम्मत्ते लढे, चिंतामणि कप्पपायवब्भहिए। पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरा मरं ठाणं ॥४॥ इअ संथुप्रो महायस! भत्तिब्भर-निब्भरेण हिअएण। ता देव ! दिज बोहिं, भवे भवे पास-जिणचंद ॥
___२०-जयवीयराय सूत्र।
जय वीयराय! जगगुरु!, होउ ममं तुह पभावो भयवं ! । भव-निव्वेओ मग्गा-णुसारिया इट्टफल-सिद्धी ॥ १॥ लोग-विरुद्ध-च्चाओ, गुरु-जण-पूआ परत्थकरणं च । सुह-गुरु-जोगो तव्वयण-सेवणा आभवमखण्डा ॥२॥
२१-आचार्य आदिको वन्दन ।
आचार्यजी मिश्र, उपाध्यायजी मिश्र, जङ्गम युगप्रधान भट्टारक (वर्तमान श्रीपूज्य-आचार्यजीका
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