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अभय रत्नसार। भविस्संतिणागए काले। संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि ॥१॥
१६–जावंति चेइआई सूत्र। जावंति चेइआई, उड्डे अ अहे अ तिरिअ-लोए अ। सव्वाइं ताइं वंदे, इह संतो तत्थ संताई ॥१॥
१७–जावंत केवि साहू सूत्र ।
जावंत केवि साहू, भरहेरवय महाविदेहे अ। सव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंडविरयाणं ॥१॥
१८-परमेष्ठि नमस्कार । नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॥
१६-उवसग्गहरं स्तोत्र । . उवसम्ग-हरं पासं, पासं वंदामि कम-घणमुक्कं। विसहर-विस-निन्नासं, मंगल-कल्लाण
आवासं ॥१॥ विसहर फुलिंग-मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ। तस्स गह-रोग-मारी-दुट्ठ
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