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अभय रत्नसार। प्रभु नम, दसमो देव विसाल ॥ इम वज्रधर इग्यारमो, त्रिकरण नम त्रिकाल ॥ दी० ॥१७ बारमो चंद्रानन जिन, पच्छिम धातकी मांहि ॥ विचरै च्यारु जिणवरा, अचलमेरु उच्छाहि ॥ दी० ॥ १८ ॥ एहवो धातकी खंड ए, परदक्षणा परकार ॥ अठ लख जोयण वीटीयो, समुद्र कालोदधि सार ॥ १६ ॥ दी० ॥ ॥ ढाल ॥ ३ जी॥ पहिली प्रतिमा एकण मासनी ॥ ए चाल ॥ ___ कालोदधिने पैलै पार ए, वीट्यो चूडी जेम विचाल ए ॥ सोलह लख जोयण विसतार ए, दीप पूवरवर अति सुखकार ए ॥ उलालो• सुखकार पुष्करद्वीप त्रीजो, तेहनें आधै पगै ॥ विच पड्यो परवत मानुष्योत्तर, मनुष्यक्षेत्र तिहा लगै तिण आधिकर अठ लाख योजन, अरध पुष्कर एम ए॥.तिहां करमभूमी छ ए कहीजे, धातकी खंड जेम ए॥ २०॥ ढाल ॥ आधै पुष्करने पूरब दिसे, मंदिर नांमे मेरु तिहां वसै ॥ पच्छिम वि.
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