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स्तवन- संग्रह |
पवास ने छठ विचार ॥ साध समझें लोक समझें राज समच, कुड़ा आल दियां दुइ चौथरु छठ प्रत्यक्ष ॥ १२ ॥ उपवास दस दंडायां तेम मरा यां वीस, इक लख असी सहस नवकार गुणो तजि रीस ॥ पख चौमास वरस लग इक त्रिण दस उपवास, अधिको क्रोध करे तो आलोयण नहि तास ॥ १३ ॥ सूआवड़ना दोष कियां गुरु ऊपर रोस, जीव विराधन कीधां बहु असतीने पोस || करीय दुवालस बार हजार गुणो नवकार, मिच्छादुक्कड़ दे आलोवो वारोवार ॥ १४ ॥
|| ढाल || ३ || बे कर जोडी तांम ॥ ए चाल ॥ ॥ वि कीधा पञ्चखाण, विण दीघां वांदखां, पड़िकमणा विध पांतरे ए ॥ अोझा नें सिाय, तिहा विधै भण्या, इक २ आंबिल चरै ए ॥ १५ ॥ गंठसीनें एकत्र, निवी आंबि ल, भांगे आलोयण इमें ए ॥ एक पांच पट आ ठ, नवकरवालीय ॥ गुण नवकार अनुक्रमे ए ॥
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