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अभय रत्नसार।
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सणनें गणता चोथ विचार ॥७॥दर्शनना अति चार तिहां पुरमढ्ढ जघन्य, एकासण आंबिल अठम चिहुं भेद मन्न ॥ आशातन गुरु देवनी साहमीसं अप्रीति ॥ जघन्य एकासणनी आलोयण चढती रीत ॥ ८॥ अनंतकाय आरंभ विणास्यां चोथ प्रसिद्ध, बी ति चउरेंद्री त्रसायां ए. कासणथी वृद्ध ॥ बहु बि ति चौरैद्रिय हण्या बि ति चउ उपवास, संकल्पादि चिहुं विधि दुगुणा दुगुण प्रकास ॥ ६ ॥ उद्देही कुलियावडा कीड़ी नगरा भंग, बहुत जलोयां मुक्या दस उपवास प्रसंग ॥ वमन विरेचन कृमि पातन आंबिल इक एक, जीवाँणी ढोलंता दोय उपवास विवेक ॥१०॥ संकल्पादिक एक पचेंद्रो उपद्रव होय, दोइ त्रिण आठ दसै उपवासै आलोयण जोइ, बहु पंचेंद्री उपद्रव छठ अठमें दस वीस ॥ चिहुं प्रकारै च ढती आलोयण सुणले सीस ॥ ११॥ पंचेंद्रीने लकड़ी प्रमुखै कीध प्रहार, एकासण आंबिल उ
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