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अभय रत्नसार। ॥ मुहपत्ती पडिलेहण का स्तवन । ॥ढाल ॥ १ ॥ कपूर हुवै अति उजलो रे ॥ए देशी ॥
वरधमान जिनवरतणा जी, चरण नमं चित लाय ॥ ज्ञान क्रिया जिण उपदिसि जी, सव सुख तणो उपाय ॥ भविक जनधर श्रीजिन उपदेस, छूटे कर्म कलेस ॥भ०॥ ए आंकणी॥ पडिलेहण मुहपत्ती तणी जी, भाखी छै पचवीस ॥ तिहां ए भाव विचारिये जी, इम भाखै जगदोस भ० ॥ २॥ प्रथम बे पास विलोकिये जी, सूत्र अरथनी दृष्टी ॥ ए पडिलेहण दृष्टिनी जी, करै धर्मनी पुष्टि ॥ भ० ॥३॥ समकित मिथ्या मिश्रनी जी, मोहनी तीननो त्याग ॥ काम-राग स्नेहरागनें जो, तज वलि तिम दृष्टिराग ॥ ४ ॥ भ० ॥ सीष वधू टक गुरुथकी जी, वाम हाथ करनाउ ॥ नव अखोड़ा आदरो जी, नव पखोडा गमाउ ॥ ५ ॥ भ० ॥ देवतत्व गुरुतत्वसू जी, धमतत्व ग्रह सार ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मनो जी,
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