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स्तवन- संग्रह |
लहिनें साधुनें वेषमें रहियो ॥ ३१ ॥ राग द्वेष छूटे नही किम हुवे छूटकबार, पिरण है माहरै मनसुध ताहरो एक आधार || तारण तरण में त्रिकरण सुद्धे अरिहंत लाधो, हिव संसार घणो भमिवोतो पुदगल आधो ॥ ३२ ॥ तूं मन विं त पूरण आपद चूरण सांमी, ताहरी सेव लही तो में नवनिध सिद्ध पांमी ॥ अवर न कांइ इच्छू इण भव तू हिज देव, सूधै मन इक होज्यो भव भव ताहारी सेव ॥ ३३ ॥
॥ कलश ॥
इम सकल सुखकर नगर जैसलमेर महिमा दिन दिनें ॥ संवत सतर उगणतीसै, दिवस दीवाली त ॥ गुणविमल चंद समान वाचक, विजय हरष सुसीस ए ॥ श्री पासना गुण एम गावै, धरमसी सुजगीज ॥ ३४ ॥
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