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स्तुति संग्रह |
भरनाशन अभिनव सूर समाणीजी ॥ भवोदधि तरणी मोक्ष नीसरणो नयनिक्षेप सोहाणीजी । ए जिनवाणी अमिय समाणी आराधो भविप्राणी जी || ३ || शासनदेवी सुरनर सेवी श्रीपंचांगुली माईजी । विघन विडारणी सपत्तिकारणी सेवक जन सुखदाईजी || त्रिभुवनमोहनी अंतरजामनी जगजस ज्योतिसवाईजी । सानिधकारी संघने होयज्यो श्रीजिनहर्ष सुहाईजी ॥ ४ ॥
॥ पञ्चमीकी स्तुति ॥
पंच अनंत महंत गुणाकर पंचमि गति दातार | उत्तम पंचमि तप विधि दायक ज्ञायक भाव अपार ॥ श्रीपंचानन लांछन लांछित बांछित दानसुदक्ष | श्रीवर्द्धमान जिणंदसु वंदो आणंदो भविपक्ष || १ || पूरण पंचमहाश्रव रोधक बोधक भव्य उदार ॥ पंच अणुव्रत पंच महाव्रत विधि विस्तारक सार ॥ जे पंचेंद्रिय दमि शिव पुहता ते सगला जिनराय । पंचमी तप धर भवियण ऊपर
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