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स्तुति-संग्रह। उवझाय साहू नाण दंसण विनय पहाण ॥ चारित्त ब्रह्म किरिया तपि गोयम जिनभाण । संयम नाणी श्रुत संघ सेवो बीसे ठाण ॥१॥ उत्कृष्ट जिनवर एकसो सित्तर धीर । बलि काल जघन्ये जिनवर वीस गंभीर ॥ जिन थाय अनंत अतीत अनागत काल । ए वीसे थानक आराधी गुणमाल ।। २॥ आवश्यक बे वेला जिनवंदन त्रिण काल । थानकपद गिणवो सहस दोय सुकमाल ॥ काउसग गुण स्तवना पूजा प्रभावना सार । इम शासन वच्छल करतां भवनो पार ॥३॥ समरीजे अहनिशि गुणरागी सुर साथ । जरक जरकरणी सुरपती वेयावच्च कर नाथ ॥थानकतप विधस जे सेवे मन रंग । देवचंद्र आणाये सानिध करे तसु चंग॥४॥
॥नवपदजी की स्तुति ।। अनुपम गुण आगर सुरक सागर वंदित सुरनर वृन्दाजी ।। नवपदमाहे मुख्य वखाण्या
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