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अभय रत्नसार
॥ श्री शितलनाथजी की स्तुति ॥ ॥ सुख समकितदायक कामित सुरतरुकंद | दृढरथ नृप राणी नंदाकेरो नंद ॥ भद्दिलपुर स्वामी फेडे भवना कंद । चित चोखे नमिये श्री शीतल जिनचंद ॥ १ ॥ अतीत अनागत हुआ होस् अनंत । संप्रति काले जे क्षेत्र विदेह विचरंत || त्रिहु भवणे ठवरणा सासय असासय हुंत । ते सगला त्रिकरण प्रणमुं श्री अरिहंत ॥ २ ॥ कालिक उत्कालिक अंग अनंग पविघ । नयभंग निक्षेपा स्याद्वाद मितसिद्ध ॥ भविजन उपगारी भारी जिन उपदेश । श्रुत श्रवणे सुरगतां नासे कोडि कलेश ॥ ३ ॥ ब्रह्मजच असोका सासन सुरि सुविचार | संघ सानिधकारी निरमल समकित धार ॥ चिंता दुख चूरे पूरे मनह जगीस । ध्यान तेनो धरिये कहे जिनलाभसूरिश ॥ ४ ॥ ॥ समवसरण विचारगर्भित स्तुति ॥ || मिल चौविह सुरवर विरचे त्रिगडो सार
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