________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभय रत्नसार
२२३
उत्तम, अरथ विविध विस्तारोजी ॥ गुण परजय नय भंग प्रमाणे, जिहां षट्द्रव्य विचारोजी । ते आगम मन श्रुद्ध आराध्यां तूटे कर्मविकारोजी ॥ ३ ॥ सुन्दर रूप अनूपम सोहे, श्री चक्क सरिदे वीजी । श्रीजिनशासन सानिध करणी द्यो, वंछित नित सेवीजी ॥ कल्याण कारण जेहनी सेवा, संघ सकल सुख कंदाजी | श्रीजिनचंद मुदि पसाये, कहे जिनहर्ष सुरिंदाजी ॥ ४ इति ॥ ॥ अजितनाथजी की स्तुति ॥
विश्वनायक लायक जितशत्रु, विजया नंद | पयजुग नित प्रणमे देव अने देविंद ॥ भवलहरी गहरी सब मन धरी अमंद | श्रीसूरतसहिरे वंदो अजितजिनंद ॥ १ ॥ आठ प्रातोहारज अतिशय बलि चोती । दिलरंजन देसन तेहना गुणपेंतीस अगणित ऋद्धिधारी आचारीमां ईस । एह गुणना धारक वंदु जिन चोवीस ॥ २ ॥ सुज्ञ अरथ नोपम जिन भाषित सिद्धांत । स्याद्वाद नया
For Private And Personal Use Only