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स्तुति-संग्रह पयोरुहवुढिढकरं । सुहमगकुमगपयासकरं, पणमामि जिनागममन्हिकरं॥३॥ सिरइन्दसमुज्जलगायलया, सुहझाणविणम्मियएगलया। असुरिंदसुरेंदसुरप्पणया, मम वाणि सुहाणि कुणे
सुसया ॥४॥
॥आदिजिन की स्तुति ॥ प्रणमू परम पुरुषपरमेसर, परमातमपद धारीजी । प्रथम जिनेसर प्रथम नरेसर, प्रथम परम उपगारी जी ॥ योगीसर जिन राज जगत गुरु, सहजानंद स्वरूपोजी। ऋषभजिनेसर लोकदिनेसर, आतमसंपद भूपोजी॥१॥ पांच भरत वलि पांचे एरवत, पंच विदेह मझारोजी । काल अतीत अनंता जिनवर, पाम्या सिव पद सारोजी। वलिय अनागत काल अनंता, थास्ये इणही प्रकारोजी। संप्रति काले वीस विदेहे, वंदु बहु सुखकारोजी ॥२॥अरथे श्रीजिनराज वखाण्या, गूथ्यां श्रीगणधारोजी। अंग दुवालस अतिसे
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