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२१८ स्तुति-संग्रह
॥श्रीनेमिनाथजी की स्तुति ॥ ॥सुर असुर वंदिय पाय पंकज मयणमल्लअक्षोभितं, धन सघनश्याम शरीर सुन्दर शंख लंछन शोभितं ॥ शिवादेवि नंदन त्रिजग वंदन भविक कमल दिनेश्वरं, गिरनार गिरिवर शिखर वंदू नेमिनाथ जिनेश्वरम् ॥ १ ॥ अष्टापदें श्री
आदिजिनवर वीरजिन पावापुरे, वासुपूज्य चंपा पुरिय सीधा नेम रेवय गिरिवरे ॥ समेतशिखरें वीस जिनवर मुगति पहुता मुनिवरू, चउवीस जिनवर तेह वंदू सयल संघे सुखकरू ॥ २॥ इग्यार अंग उपांग बारे दश पयन्ना जाणिये, छ छेद ग्रंथ प्रसत्त्थ अत्त्था चार मूल वखाणिये ॥ अनुयोग द्वार उदार नंदीसूत्र जिन मत गाइयें, एह वृत्ति चूर्णी भाष्य पेंतालीश आगम ध्याइये ॥३॥दुहं दिसें बालक दोय जेहने सदा भवियण सुखकरू, दुख हरें अंबा लुब सुन्दर दुरिय दोहग अपहरू ॥ गिरनार मंडण नेमि जिनवर
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