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स्तुति-संग्रह। २११ पंचदिव्यं व्यधात् । प्रहवो पंचजने मनोमतकृतौ स्वारत्न पञ्चालिका, पंचम्यादितपोवतां भवतु सा सिद्धायिका नायिका ॥४॥इति पंचमीस्तुतिः
॥ अष्टमी की स्तुति ॥
चउवीसे जिनवर प्रणमं हु नितमेव, आठम दिन करिये चन्द्रप्रभुनीसेव। मूरति मन मोहे जाणे पूनिम चंद, दीठां दुःख जाये, पामे परमानंद ॥ १॥ मिलि चोसठ इन्द्र पूजे प्रभु जीन पाय, इन्द्राणी-अपछरा कर जोड़ी गुण गाय। नन्दीश्वर द्वीपें मिलि सुरवरनी कोड । अठाई महोच्छव, करता होडा होड ॥२॥ शेजा शिखरें जाणी लाभ अपार, चउमासे रहिया गणधर मुनि परिवार । भवियणने तारे देई धरम उपदेश । दूध-साकरथी पण वाणी अधिक विशेष ॥ ३॥ पोसो-पडिक्कमणं करिये व्रत-पच्चक्खाण, आठम तप करतां
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