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अभय रत्नसार। जत्तो रक्खामिमहब्बएपंच ॥ २६ ॥ छज्जीवनिकायवहिं छप्पियभासाओ अप्पसत्थानो परिव
जंतोगुत्तो रख्खामिमहब्बएपंच ॥ ३०॥ छविहमभिंतरियं वज्जंपियविहंतवोकम्म उवसंपन्नोजुत्तो रक्खामिमहव्वएपंच ॥ ३१॥ सत्तभयाणाई सत्तविहंचवनाणविभिंगा परिवज्जंतोगुत्तो रख्खामिमहव्वएपंच ॥ ३२ ॥ पिंडेसणपारणेसण उग्गह सत्ति कया महज्झयणा उवसंपन्नोजुत्तो रक्खामिमहव्वऐपंच ॥ ३३॥ अट्रमयहाणाई अट्टयकम्माइतेसिंबंधिंच परिवज्जंतो गुत्तो रक्खामिमहव्वएपंच ॥ ३४ ॥ अट्रयपवयणमाया दिट्टाअट्टविहनिटिअठहिं उवसंपन्नोजत्तो रक्खामिमहत्वएपंच ॥ ३५ ॥ नवपावनियाणाई संसारस्थायनवविहाजीवा परिवजंतोगुत्तो रक्खामिमहब्बएपंच ॥ ३६॥ नवबंभचेरगुत्तो दुनवविहंबंभचेरपडिसुद्ध उवसंपन्नोजुत्तो रक्खामिमहब्बएपंच ॥ ३७॥ उवघायंचदस
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