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स्वधर्म तथा स्वदेशके प्रति श्रद्धा और प्रेमभाव उत्पन्न हो और जैन जातिका भविष्य अवनतिके अन्धकारसे निकल कर उन्नतिके प्रभाकरसे उज्ज्वल हो और कुछ अंशोंमें आपकी आशा फलवती भी हुई।
आपको विद्याध्ययन के समय सभा सोसाइटियोंसे अधिक प्रेम था । और इसीसे श्रीजैन पाठशाला के अन्तर्गत ही आपने " शिक्षाप्रचारक जैन पुस्तकालय" की स्थापना की थी । इसका मुख्योद्देश्य जैन समाजमें शिक्षा प्रचार करना तथा व्याख्यानादि द्वारा समाज-सुधार करना था । यही संस्था अब इस समय श्रीजैन महावीर मण्डलके नामसे प्रसिद्ध है जो स्वजातिकी असीम सेवा कर रही है। आज दिन यहाँ जैन समाज में वेश्या नृत्य तथा अन्यान्य कुरीतियोंका उन्मूलन होना आपहीके सद् परिश्रमका फल हैं ।
आपने बीकानेरहीमें नहीं प्रत्युत कलकत्ता शहर में भी जैन श्वेताम्बर मित्र मण्डलका भी बहुत कुछ सुधार किया । इसमें इन्होंने एक पाठशाला की नितान्त आवश्यकता बतला कर स्थापना करवायी और आप इसके अवैतनिक उपमन्त्री पद पर रहकर यथाशक्ति सेवा की। आज तक यह पाठशाला अपना काम सुबारु रूपसे कर रही है।
आप तीर्थयात्रा के बड़े प्रेमी थे । और इतनी ही अवस्था में सिद्धाचल, गिरनार, आबू समेत शिखर पाचापुरी तथा चम्पापुरी आदिकी यात्राएं कर डाली थीं।
दुर्भाग्यवश पिछले दिनों में आप श्वास रोग से पीड़ित हो गये
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