________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[१०]
बड़े होनेपर आपने स्थानीय श्रीजैन पाठशाला में प्रवेश कर दशम कक्षातक अङ्गरेजी, संस्कृत तथा हिन्दोकी शिक्षा प्राप्त की थी। आपका हिन्दी भाषासे विशेष प्रेम था ।
।
आपमें धर्मका अङ्कुर बचपनहीसे था। इस अङ्कुरने युवावस्थामें आपकी वृत्तिको जैन जातिमें घुसी हुई कुरीतियों को दूर करनेकी ओर झुकाया । आप सदा अब इस बातकी चिन्तामें रहने लगे कि समाजकी इन कुरीतियोंको कैसे दूर किया जाये । बहुत कुछ सोचने विचारनेके पश्चात् आपने अपने मनमें यह निश्चय किया कि अविद्या अन्धकारको नष्ट किये बिना कोई मा सामाजिक सुधार करना दुष्कर ही नहीं बल्कि असम्भव है अस्तु अब सब ओर से अपने मनको हटाकर आपने विद्या प्रचारहीमें अपनी शक्तिको लगाना प्रारम्भ किया ।
1
सर्व प्रथम आपने स्थानीय श्रीजैन पाठशाला हो को, जिसमें आप पहले बचपन में विद्याध्ययन कर चुके थे. सुधारना अपना परम कर्त्तव्य समझा। पहले आप इसके उपमन्त्री पदपर रह कर कार्य करने लगे । आपके उत्साह और कार्यको देखकर और लोगों का भी ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ, जिसका फल यह हुआ कि जैन समाजके कुछ उत्साही पुरुषोंने यथासाध्य तन, मन, धनसे आपको इस कार्य में सहायता प्रदान की। थोड़े शब्दों में कह देना पर्याप्त होगा कि जोवन पर्यन्त आपने इस पाठशालाकी सेवा की और जो कुछ उन्नति इस पाठशाला की हुई वह आपही परिश्रमका फल है। सबसे बड़ी बात जो आपने की वह शिक्षण प्रणालीका सुधार था । जिससे बालकोंके हृदय में स्वजाति
For Private And Personal Use Only