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अजित - शान्ति-स्तवन । ८३
गणेहि, तो देव-वहूहि पत्र पण मिस्सा | जस्स जगुत्तम - सासरण अस्सा, भत्ति वसागयपिंडिअआहिं । देव-वरच्छरसा - बद्दुआहि', सुरवर - रइ-गुण- पंडिअहिं ॥ ३० ॥ ( भासुरयं ) वंस -सह- तंति-ताल-मेलिए, तिउक्खराभिरामसद मीस कए अ, सुइ- समाणणे अ सुद्धसज्ज - गी - पाय जाल - घंटियाहि, वलय- मेहलाकलाव - नेउराभिराम-सद मीसए कए अ देवनहि हि, हाव-भाव - विभम-प्पगार एहि, नचिऊण अंग-हारएहि वन्दित्राय जस्स ते सुविकमा कमा, तय तिलोय - सव्व-सत्त-सन्तिकारय, पसंत - सव्व - पाव - दोसमेस ह नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥ ३१ ॥ ( नारायओ ) ॥ छत - चामर - पडाग - जू - जब मंडिया, भय वरमगर - तुरग - सिरिचच्छ-सुलंछरणा । दीवसमुद्द मंदर - दिसागय-सोहिमा, सत्थिय-वसह सीहरह- चक्क - वरं किया ||३२|| ( ललिअ ) सहाव
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