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ध्यानसे पढ़िये।
इस पुस्तककी या और किसी विषयके पुस्तककी आशातनाअवज्ञा नहीं करनी चाहिये। क्योंकि ज्ञानकी अवज्ञा करनेसे मानावरणीय कर्मों का बन्ध होता है। पूजनकी पुस्तकोंमें भी लिखा है, कि “आगमनी आशातना नवी करीये" अर्थात् शास्त्रकी अवहेलना नहीं करनी चाहिये। प्रत्युत उक्त वाक्यको बार-बार मनन करते हुए ज्ञानकी आशातनाका भयकर जिस तरह बन सके ज्ञानका अधिक आदर और विनय-पूर्वक बहुमान करना चाहिये। पुस्तकको पासमें रखकर खान-पान न करना, अशुद्ध हाथोंसे या पेशाब कर लेने के बाद बिना-हाथ धोये पुस्तकको नहीं छूना चाहिये। ज्ञानको पासमें रखकर शयन नहीं करना चाहिये। यूक लगी हुई अंगुलीसे स्पर्श नहीं करना चाहिये। पुस्तकके समक्ष पाऊँपर पाऊं लगाकर नहीं बैठना चाहिये। पुस्तकको जमीन पर नहीं रखना चाहिये। मैली जगह पर या अकाल समयमें नहीं पढ़ना चाहिये। पाऊं अथवा चरवले पर पुस्तक रखकर पठन करना ठोक नहीं। क्योंकि नाभीके नीचेका अवयव अपवित्र होता है। और चरवलेसे भूमि-मार्जन किया जाता है, इसलिये पुस्तकको संपुट-प्लॉपड़े पर रखकर तथा मुखके आगे मुहपत्ती या वस्त्र देकर अध्ययन करना कहा है। ___ "मुंहके आगे मुंहात्ती रखनेकी प्रथा दिन-प्रतिदिन कम होती जारही है, यह बहुत ही दोषास्पद है । मुंहपत्तोके न रहनेसे
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