________________
207.]
Kavya
485 the Ms. probably being stained by water, appears dirty; complete ; portion on many folios illegible due to diffus
sion of ink. Age.-- Sanvat I712. Author (of the text).-- Jayadeva.
, (,, ,, com.).-- Not mentioned. Begins.--- (text) fol. 10
॥श्रीकृष्णाय नमः ॥
मेधैर्मेदुरमंबरं etc. as in No. 180. Begins.--( com. ) 1ol. 1b
जयदेवकविग्रंथके आरंभ ही मंगलाचरनुकरत है। तहां या श्लोककी यह पूर्वपीठिकाहे यु एक समयविषे वृषभानकी गाइबुहा
इवेकें etc. Ends.- (text) fol. 1756 साध्वी माध्वीक चिन्ता etc. up to विप्वग्वचासि ॥ ५॥
as in No. 180. Ends.--(com.) fol. 762
अनुन्ववेकांताधर स्त्रीके अधर तूं भूमिलोकुछाँडिकैधरणितलं कहापातालहिजाह अब इहि लोकगीतगोविन्दहि छॉडिकै तेरौ आदनुन करिहै ।। इति श्रीगीतगोविन्दे जयदेवकते महाकाव्ये सुप्रीतपीतांबरो नाम द्वादशः सर्गः ॥१२॥ ॥ शुभं।। संवत् १७१२ वर्षे बैसाप मुदि ७ कायस्थ श्रीवास्तव्यसतौरिहाठा श्रीवृदावन दासेनलिखितमिदं पुस्तकं