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Chandas
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Ends
fol. 24b -
त्रिभंगमैनसूर तिन देषि धमदूरत पुकारे द्वारसूरत कृपा की दृष्टि करियै ॥ छंदबंद जो करहितौ छंदबंदि चितलाइ छंदबंद सब छाडितह नंदनंद गुन गाइ ॥ इति सूरतमिश्रविरचिते छंदसार समाप्तं ॥ संपूर्ण ॥ शुभमस्तु ।
छन्दसार ....
Chandasāra
865 No. 131
1886-92 Size - 10d in. by 6g in. Extent -10 leaves%3D 14 lines to a page%3; 40 letters to a line. Description-Thin country paper, Devanagari characters%3; not very
old in appearance%3; handwriting clear, legible and uniform%3; folios numbered in both margins: edges.slightly worn out3B complete. .
The Ms. is written in Hindi. Age-Does not appear to be very old. Author - Not mentioned. Subject - Chandas. Begins — fol. 10
श्रीराधावल्लभो जयति अथ छंदसार लिख्यते दोहा ......... राधे हरिगर विकागुरुसागरगनराई . छंदोगतिवर्णन करौं इनके पद चितलाइ १ पहले कहि लघु गुरु कृवावहुरिगमागनभेद मात्रकवरनकछंदकहि होइ कछू नहि षेद २ . . छंदनको गननाकछुक कहिसु जथामति देत .
इकतक बरनन करीं ग्रंथ बढमके हेत etc. Ends -- fol. 104
दोहा ॥ व्याकर्न लक्षइक जानिये जोतिष चारिसुलाष ॥
षष्टलक्ष वैदक कहै अगनित छंदहि भार्ष ॥ १४॥
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