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Jaina Literature and Philosophy
[617. Yasodhararāsa
Description.— Complete, For other details see
No. 1468 (a).
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NO. 1886-92.. Author.- Narendrakirti Suri. Subject.- This poem deals with Siddhacakrayantra. Begins.- fol. 12. छपया।
सीध तणो जे जंत्र मंत्र भहीमंडल साचो। मुगध मानवी । मूढ । रपे मिथ्याते राचो। तीर्थकर जगि जेण । तेण पण ए । उचरयो ।
जंत्र मंत्र । सहे सास्त्र । आदि ओ झं (?) अक्षर करयु etc. Ends. - fol. 1526
प्रभाचंद्र गच्छनाथ पदमनंदी भट्टारक । सकलकिरति सूभभूतीभवनकिर्तभलफारक न्यांनभूखण योगंद्रवजे किर्तववारपू । श्रीसू(र)चंद्रसूनाद्र । समतिकिर्त सूत्रकारक । गणकिर्ती वादिभूषण सहीत सकलभूषण आदा। नरेंद्रकिर्तरि कहे सहे गुरपद प्रणमो मदा ॥ दोहा । जो कंताकुजरयठे | कनकनक पत्रलेहप्यः (१) त्रि मगता फल जडें तो हे जनम अकज । १
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जन्मकल्याणकस्तवन
Janmakalyāṇakastavana
. 1468 (d). No. 618
1886-92. Extent.-- fol. 1496 Description. - Complete ; 5 verses in all. For other details see
1468 (a). Yasodhararāsa No. --
1886-92. Author.- Not known. Subject.-- Birth-celebration of the lirihankara described in
Gujarati. Begins.- fol. 149
जिनवरजनमकल्याणके कोडी मपए।
नट इंद नरेंद फणेद भुवनं रलीआमणी ए etc. Ends.- fol. 149
मूरिष मानवी मान रॉकी करि नाच'ए। बापडा बीजारे बहू बदरंग । तेणे किसूराचणं ए॥५॥
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