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Begins. -- fol. 9 राग नट
Jaina Literature and Philosophy
Ends.- fol. 9b
अदभूत मूरति निरवता रे नयणे आनंद अपार वीरजी सकल मनोरथ पूरवा रे कामकुंम अवतार १ वीरजी सेवककमल प्रकासवा रे दिनकरतेज उदार वीरजी भयभंजन जन रंजवा रे मोहणबल्लीसार वीरजी० २
Extent.
अतिसय महिमा बिलसवा रे पर धाम जिनइंद वीरजी जगगुरुबंछित सुरतरु रे सेवि सुरासुरवृंद वीरजी ६ कल्याणवरण तनु राजता रे कल्याणकवरणवर नाम वीरजी गुरु कल्याण सदा स्तव रे आपो सुमति अभिराम वीरजी ७ इति श्रीवीरस्तव
वीरस्तु ( यमकस्तुत्यन्तर्गत )
No. 474
Virastuti
( included in Yamakastuti ) 1250 (32). 1884-87.
20 Subject. Eulogy of ( 1 ) Lord Mahāvira, ( 2 ) all the Tirthankaras (3) speech of the Tirthankara and ( 4 ) the goddess of speech.
Begins.-- fol. 7b
[473.
fol. 76.
Description.— Complete ; 4 verses in all. They form the ending portion of Yamakastuti (see p. 65 ). For other details see ādināthamahāprabhāvakastavana (Vol. XIX, pt. 1, No. 29 ). Author.— Dharmaghosa Suri. For detils see p. 64.
त्रिदशविहितमानं सप्तहस्तांगमानं
दलित मदनमानं सगुणैर्वर्द्धमानं । अनवरतममानं क्रोधमत्य (त्य ) स्पमानं
जिनवरमसमानं संस्तुषे वर्द्धमानं ॥ १ विगलित वृजिनानां । नौमि राजीं जिनानां
सरासेजनयनानां ('पूर्णचंद्राननानां गजवरगमनानां वारिवाहस्वनानां
हतमदमदनानां) मुक्तजीवासनानां ॥ २
1 The portion given in brackets is missing in the Ms.