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Jaina Literature and Philosophy
[465.
1659
His Gujarati works are as under :-- Work Vikrama Samvat Work Vikrama Samvat करकण्डुचोपाइ
1662 प्रियमेलकरास
1672 गौतमपृच्छारास
1686 बारव्रतरास
1685 चम्पर्कचोपाह 1695 सुगावतीचोपाइ
1688 चारप्रत्येकबुद्धरास 1665 वल्कलचीरिचोपाइ 1681 थावाचौपाइ
169 वस्तुपालतेजपालरास 1682 दानशीलतपभावनासंबाद 1662 व्यवहारशुद्धिचोपाइ 1693 • द्रौपदीसतीसम्बन्ध 1700 शत्रुजयरास
1682 नलदवदन्तीचोपाइ 1673 शीलछत्रीसी
1665 पुखराजऋषिरास
1698 सन्तोषछत्रीसी पुण्यसारचरित्र
1673 साम्बप्रद्युम्मचोपाह _He has commented upon the following works, in Sanskrit:-- Work Vikrama Samvat Work Vikrama Samvat कल्याणमन्दिरस्तोत्र 1695 पज्जासवणाकप्प 'जयतिहुयण' थोत्त 1687 रघुवंश
1695 जीववियारनवतत्तदण्डक
रूपकमाला .
1663 दसवेयालिय 1691 वीरचरित्रस्तोत्र
1684 नवतत्त 1688 वृत्तरत्नाकर
1694 Subject.-- The Prakrit text along with a Sanskrit commentary. . Begins:-- ( text ) fol. I'.
दुरियरयसमीर etc. as in No. 459. , -- ( com.) fol. 11 ६० ॥
नत्वा वीरजिनेंद्र 'दुरिअरयसमीर'सत्रवृत्तिमहं । अतिसुगमाम्य(म)ह वक्ष्ये शी(प्रं) तस्यार्थबोधार्थ १ श्रीजिनचंद्रगणाधिपा(?प)शिष्यादिमसकलचंद्रगणिशिष्या(:)।
प्रवदंति समयसुंदरनामानः पाठकाः प्रग(क)टं ॥ २ ॥ etc. Ends.- ( text ) fol. 166
एवं वीरजिणेसणेसर etc. up to ४४ as in No. 459. २० , --(com.) fol. 16° पुनः किं दोसायरुग्छयणं दोषाणां आका(क)रः समूहः
पक्षे दोषाकरश्चंद्रस्तस्य० छेदनं निरास इति वृत्तार्थः इदं सा(शा)लविकीडितं नाम छंदः ४४
1 Its commentary is named as Arthalapanika.