________________
50
Jaina Literature and Philosophy
[34.
10
Begins,- fol. 1a
पढम जिणादिम जिण चउवीस ।
गोअम गणहर नामओ सीस । जिणसासणि जस परिस हुआ।
विगतिइं बोलिस ते जूआ ॥ १॥ उत्तम तित्थंकर गणधार ।
उत्तम चउविह संघ मझारि । अतीत अनागत ज वर्तन ।
ते ऋषि समरउं पुण्यनिधान ॥२॥ etc. Ends.- fol. 36
सो ... कोडिल(ख) कोडिलक्खा निनि सहसकोडि ।
बिनसयं कोडी सतर कोडि। चुलशी लखा गुण सुविशाल ।
श्रावक समरंउं बारवृतपाल ९६ पणत्तीस कोडि लष बाणवह कोडि ।।
सहसा पणसय बत्रीस कोडि। बारसइं अधिका श्राविका जाणि ॥
दूसमसंघ समरंसु विहा ।। ९७। 'चंद्र' गच्छ गुरु अंबरि हहं)स ।। सोमतिलकसूरि पट्टवतंस ॥ देवसुंदरसूरिषि समरइं तसि द्विजाई ।। ९८ जां लगई 'मंदर' रहई एक ठामि । जां लगइ सागर लहरजाइ । जां लगइ प्रतपइ दिनकर चंद्र । तां लगइ प्रतपउ श्रीसंघद्वंद ॥ ९९
इति उत्तमरिषिसंघस्मरणचतुष्पद्यः समाप्ताः । Reference. This work does not seem to have been published.
2F उद्योतपञ्चमीस्तुति
Uddyotapañcamīstuti वृत्ति सहित
with vrtti
1172. No. 35
1884-87. Size.- 9; in. by 41 in. Extent.-- (text) 2 folios; 2 lines to a page ;-42 letters to a line.
, - (com.)" " ; 19 , " "; 65 , , ,