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Jaina Literature and Philosophy
उपकृतिकृतकक्षः । श्ल(श्लिष्टवैधुर्यकक्षः परिमलितविपक्षः शासनार्थेषु दक्षः निचितसुकृतलक्षः प्रीतिसंफुल्लदक्षः
श्रियमधिकृतरक्षः यातु सिद्धांतयक्षः ॥ ४ ॥ श्री आदिनाथस्तुति समाप्तम ।
Reference. Is this hymn published ?
आलोचनापाठस्तुति
No. 33
Extent. fol. 12b to fol. 15.
Description.- Complete ; 34
Stutivacanika No.
चाल छंद ॥
verses in all. 986 (a ), 1892-95.
Begins.— fol. 12b ॐ नमः परमात्मादेव नमः ॥
Author — Not mentioned.
Subject. A poem in mixed Gujarati and Hindi for atonement.
अथ आलोचनां पाठभाषा लिपिए है ।। दोहा ॥
बंद पांचों परम गुरु ॥
Ends. fol. rs a
दोहा ॥
चवीश जिनराज ||
करूं शुद्ध आलोचनां ॥
सिद्ध करनके काज ॥ १ ॥
सुनिए जिनराज हमारी ॥
हम दोष किपे (ये) अतिभारी ॥ तिनकी अच ( ब ) निरवृत्तिका जैं ॥ भवसरण लही जिनराजें ॥ १ ॥
दोषरहित जिनदेवजी ॥
[32.
निज पद दीज्यो मोहि ॥
Alocanā pāṭhastuti
986(e). 1892-95.
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