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Alamkara, Samgita and Națya
[ 121.
Age.- Samvat 1947. Author.-Ciramjiva Bhatra. Begins-folio ra
॥श्रीगणेशाय नमः॥ तमोगणविनाशिनी सकलकालमुद्योतिनी धरातलविहारिणी जडसमाजविद्वेषिणी ॥ कलानिधिसहायिनी लसदलोलसौदामिनी
मदंतरवलंबिनी भवतु कापि कादंबिनी॥१॥ etc.as in No. 120. Ends--folio 23a
वीक्षणाय सदसद्विवेकिनां शिक्षणाय लघुबुद्धिशालिमां। लक्षणैरिह चिरंतनेरहो लक्षिता स्वकृतपद्यपद्धतिः॥१॥ द्वैताद्वैतमतादिनिर्णयविधिप्रोबुद्धबद्धिश्रुतो भट्टाचार्यशतावधान इति ये गौडोद्भवोभूत्कविः। ग्रंथे काव्यविलाससंज्ञिनि चिरंजीवेन तज्जन्मना
लंकारैरपरादितो हृदि सतां संगाय भंगिः कृता । इति श्रीचिरंजीवभट्टाचार्यकृत काव्यविलासे अलंकारमयी द्वितीया
भांगः ॥२॥ समाप्तोयं काव्यविलासः॥ ॥सं० १९४७ भाद्र वा द्वितिय . . शुद १ कृष्णगडे॥ References.- Same as in No. 120.
काव्यापर्श
Kāvyādarśa
697. S No. 122
1891-95. Size.- 9 in. by s} in. Extent.— 37 leaves; 10 lines to a page; 30 letters to a line. Description.-Country paper ; old in appearance; Devanagari
characters; hand-writing bold, clear and legible, also uniform ; borders ruled in double black lines; red pigment used for verse-numbers and yellow for corrections ; right