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Jaina Literature and Philosophy
नेमसागर ने मिसागर नाम अभिराम कामितपूरण अभिनवो कल्पवेलिसम सदी (दा) कहीहं जपतां जगि जस विस्तारं ललित लील आनंद लहीइं etc.
Ends. fol. 64 ढाल राग धन्यासी
जय जय साधु शिरोमणी नेमिसागर वर नामो जी कामितपूरण सुरतरु वाचकवृंदललामो जी २९ ज० गुणसागर गुणगण भर्यो श्रुतसागर श्रुतवंतो जी दरसनसागर दीपतो लाभसागर बुध संतो जी ३० ज० जवड वयरागी जगजयो विवेकसागर जस गेहो जी मेघसागर पंडितवरू कुशलसागर ससनेहो जी ३१ ज० मुगतिसागर महिमा घणो देवसागर दीइं मानो जी पंडित गण मुनि जाणीइं उदयसायर अभिधानो जी ३२ ज० सुषसागर आदर करी स ( ? र ) विसागर परिवारो जी मिसागर गुरुनांमधी लहिज्यो जयजयकारो जी ३३ ज० संवत सोल बिहुत्तरई ( १६७२ ) नयर ऊजेणी मझार जी मागसिर शुदि बारस दिनें थुणिओ श्रीअणगारो जी ३४ ज०
[ 350.
वाचक विद्यासागरू तास पंचायण सीसो जी ज० विबुध कृपासागर कहिं पूरो सकल जगीसो जी ३६ ( १३५ ) ज०
इति श्रीनेमिसागरो उपाध्याय निर्वाणरासः समाप्तः लिषितश्च संवत १७७० वर्षे श्रावणवदि ५ बुधे मुनिना जयसौभाग्येनालेषिः शुभं भवतुः
श्रीरस्तुः
Reference. Published. For extracts and additional Mss. see Jaina Gurjara Kavio (Vol. I, pp. 484-485 & Vol. III, pt. 1, p. 962).
पञ्चगतिचतुष्पदी
(पञ्चगति चोपs )
No. 351
Size— 91⁄2 in. by 4g in..
Extent. -- 23 folios; 15 lines to a page ; 45 letters to a line.
Pañcagaticatuspadi
( Pañcagaticopai )
591.
1895-98.