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Jaina Literature and Philosophy
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Author.- Padmarāja. He seems to be a pupil of Punyasāgara of
the Kharatara gaccha. If so, his additional works are as follows:
(1) अभयकुमारचउपई V. S. 1650. (2) क्षुल्लककुमार-राजर्षि-चरित्र V. S. 1667
(3) सनत्कुमारचोपाइ V. S. 1650. Subject.- Eulogy of Navakāra embodying a salutation to each of
the five kinds of paramesthin '. Begins.- fol. 70
श्रीनवकार जपउ मनरंगइ । श्रीजिनसा(शा)सनसार री माई। सवि मंगल माहि पहिलउ मंगल । जपता जयजयकार री माई ।। श्री मां पहिलइ पदि । त्रिभुवनजन प्रजित । पणमुं श्रीअरिहंत री माई। भष्टकरमवरजित बीजइ पहि(दि) ध्यावउ सिद्ध अनंत री माई । २ । श्री आचारिज त्रीजइ पदि समरउ । गुणछत्तीसनिधान री माई । चउथइ पदि उवजाय जपीजइ । सुभसूत्रसिद्धंतसुजान री माई। ३ । श्री सर्व साधु पंचम पदि समरउ । भष्ट पंचमहिं व्रतधारी माई। नव पद अष्ट इह छइ संपद सात ।
इहां गुरु अक्षर इह नइ । अष्ट सविवरण संभारेइ माई। ४ । श्री Ends.- fol. 70
इक अक्षर उच्चार री भाई । सात सागरना पातक जायइ । पद पंचा सुविचार री माई ॥ ५ । श्री। संपूर्ण पणासय सागरना पाव पुलाई दुरि री माई। इह भवि षेमकुसल मनचं(वं)छित । पर भवि सुख तर प्रर रमाई ।६।श्री इह रति सोवनपुरे सउ सीधउ । सिंवकुमार इणि ध्यान री भाई। सरप फीटी हुई पुफमाला श्रीमतिनइ परधान री माई । ७ । श्री जक्खउ पहु बकरतउ वास्यउ । परत एह सानिध री माई। चोर चंड पिंगल नइ हु किक पामइ । नरसुररिघ री माई । ८। श्री ए परमिष्टमंत्र जग उतम । चवदप्त(पू)रवउद्धार भाई ।
गुण वोलइ श्रीपदमराज गुरु समहिमा जास अपार भाई। ९॥ श्री .
नवकारगीता।
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