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________________ IO 15 20 25 30 292 Jaina Literature and Philosophy [ 538. इति श्रीरामायणे सीतासोधन केकीधा नांम कांडश्चतुर्थः ४ ॥ इति श्रीरामायणे सुंदरकांड गणिविद्याकुशल रगमानविरचिते सुंदरकांड पंचम संपूर्ण ॥ ५ ॥ - fol. 475 fol. 57b — fol. 89 इति श्रीरामायणे रावणवधः राम ' अजोध्या आगमन लंकाकांढ षष्टम संपूर्णम् ॥ Ends. fol. 99a यार पदारथ श्रोताकर चंढे लोक उभय भव साध विद्याकुशल श्रीराघव गावतां जन्म सफल भव लाभ व० १४ संवत सतरै सय ईकांवे (१७९१) आसू मास उदार सुदि दशमी तिथि सुरगुरुवासरै पूरण ग्रंथविचार व० १५ चोरासी गच्छ पुहवीपरगडा 'परतर' गणि परमाण पप्पा आचारिज गच्छनायक भला लहीयै जुगपरधान प ( व १० १६ श्रीजिनमांणिकसूरिना पाटवी श्रीजिनचंद्रसूरिंद गुण छतीस विराजै जेहमै विजयमांन दिणंद व० १७ भट्टारिक मणिधारी जस धणी श्रीजिनहर्षसूरीस तास प्रथम सिष्य 'पाठक' पदधरा सुमतहंस सुजगीस व० १८ तत्शिष्य उवझायै पद सोभता मतिवर्द्धनं मत्तिवंत तेहना सिष्य दीपक सम जांणीयै त्र (ब्रह्मचारी सतवंत व० १९ श्री आनंदनिधान पसाय लै तसु सिष्य चारतधर्म विद्याकुशल ऊभै मिली गावीयो पांमी वंछित मर्म व० २० देस सवलष मंहि दीपतो लवणसुरै सुष पाई चैत्यालय कुंथ ( g ) नाथनी सांनिधै एह कह्यौ जस गाइ व० २१ चोपइ सरस बंध ए रच्यो भलै करो सुकंठी रे गांन मनवंछित लीला संतति लहै कुशल मंगल कल्यांण व० २२ जे नरनारी इकचित प्रीतिसुं सुंणै रामायणसार इहलोक परभव सुष लहीयै घणा कविजन करोजी विचार व० २३ इति श्रीरामायणे नगर अयोध्याउद्धरणश्रीराममहाप्रस्थांनसीतादिक्षापरलोकनो नांम उत्तरकांड सप्तम संपूर्ण ॥ ७ ॥ सं १९२२ मिति पोद्द व्द ( वद ) १० चतुर्थ प्रहरे लिक्षो फूलचंद ग्रांम 'भावी'मध्ये चतुर्मास कीनो श्रीपार्श्वनाथजीप्रसादात् ॥ Reference. It seems that this work is not noted in Jaina Gurjara Kavio.
SR No.018120
Book TitleDescriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19 Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Rasikdas Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1977
Total Pages442
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size24 MB
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