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Vedanta प्रणम्य श्रीनिवासाय्यं भाष्यगीताप्रकाशकं ॥ अनधीतप्रपन्नानां चूलकार्य करोम्यहं ॥ अथ श्रीआचार्यप्रसादेन तत्वत्रयचूलकार्थ प्रकाश्यते भाषया ॥
अथ श्रीतत्वत्रयचुलकग्रंथका टीकाभाषा लिषत हैं प्रथमही आपणी कारिकाको अरथ करे है॥ श्रीनिवासाचार्यमोकुं प्रथमही श्रीगीताभाष्य तथा कुलक
आदि ग्रंथ etc. Ends.- fol. 238 Text.
वरदगुरु . . . (illegible) बटुकाप्रयापि गुरुजनपरतंत्रः सर्वतंत्रः सुतंत्रः॥ चिदचिदीश्वरतत्वनिरूपणं वरदनायकशरिनिगुंफितं ॥
परपुरुषभतिपरायणः परिपश्यत शूरयश्रीहयग्रीवाय नमः समातोयं ग्रंथः ॥ Comm.
हरिभजन अनंन्य होयकै करिवेकुंसमरथनांही अरुतत्वषयविवेकशास्त्राधेनविना अत्यंत दृढसंग विना उपजै नाही असौ जांनिकै श्रीमद्रामानुजाचार्यकृतश्रीभाष्य तथा गीताभाष्य तथा उपनिषदभाष्य आदि लेके चूलकसंग्रह भाषा कीयो है श्रद्धावद्गत है अरु ...(illegible) वलथोरौ है जैसे प्रपंन है तिनकुं उपगारकै निमत्त भाषार्थ कीयो है इति श्रीतत्वत्रयचूलक .... श्री
दामोदर . . . (lost) शिप्य भगवद्दासकृत भाषा संग्रहशांना अमृतं समाप्त। References.- (1) Mss.-A-IAufrecht's Catalogus Catalogorum.
12188,6.2192: (तत्वत्रयचलुक II 459,469, 202b); (तत्वनिर्णय of Vatsya Varada III 478).
तत्वदीपन
Tattvadīpana
356 No. 268
1895-1902 Size.- 10 in. by 4g in. Extent.- 136 leaves ; 14 lines to a page; 50 letters to a line. Description.- Thin country paper ; Devanagari characters; hand