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Jaina Literature and Philosophy
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Age - Samvat 1846. For other particulars see the preceding entry. Begins — fol. 16
॥ॐ नम सिद्धेभ्यः अथ श्रीव्रतकथाकोसभाषा लिक्षते ॥ प्रथमजेठजिनवरवृतकी कथा
॥ चौपई॥
sit erfeariaat fararra etc. as in the preceding entry. Ends-fol. 1180
एकसातभठसात ( १७८७ ) लषि ॥ संवत सुषदातार । फाग भरपि विषैजुतिथि । चारित नाम विचारि ॥ १८ ॥ सतरासै सतीयासीए । फागुण तेरसिसार॥ किसन पक्ष्य मांही लषौ । उत्तम मंगलवार ॥ १९ ॥
और धनिष्ट नपित्रमे । सारजोग पहैचानि प्रातसमय भाषा भली । पुरण करी सुजांन ॥ छप्पै ॥ श्रीजिनंदगुंणधांम जास चवसुणिवित धरिये ॥ श्रावकको आचारपालिकरमनि सौलंरिये ॥ दान सील तप भाव च्यारि वृषमुल बिचारौ ।
और सकल परिहारि चहु उतम उरि धारो ॥ सुर्गादियांनदाइंक महा । क्रमलौ सिवपदको करहि ॥ तातै घुस्यालमनिको अबैइनिबिनिमनमैं किम धरहि ॥ २१ ॥
एते श्रीसुरिश्रुतसागरक्रतव्रतकथाकोसकै अनुसारिभाषां पस्यव्रतकी कथा संपूर्ण ॥ मिती सावणवदि ९ बिसपतिवार संवत १८४६ का ॥ कथाव्रतलिषी २३ लिषाईदिवानजी.... श्रीधरमकै कारिज...
शान्तिनाथचरित्र
Santināthacaritra
971 No. 1106
1892-95 Size - 121 in. by 5t in. Extent - 216 folios; 11 lines to a page; 31 letters to a line. Description-Country paper thick, tough and greyish; Devanagari
characters; fal, bold, big, legible and good hand-writing;