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The Digambara Works
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चौपई ॥ गोतममुनि तै श्रेणिक सुणी ॥ मन माही साता धरि घणी ॥ निर्मल भाव अधिक जिहि बार ॥ होत भये श्रेणिकके सार ॥ ९४ ॥ तब ही तीर्थ नाम पदसार ॥ बंधन करिलीन्हूं भूपार ॥ जौ नरनारी इह तपकरै | सुर्गपायसिवनारीबरै ॥ ९५ ॥ तातै इह तपकी जे भाय ॥ याकौ फल जाणौं अधिकाय । श्रुतसागरमुनिकै अनुसारि ॥ भाषा कही पुस्यालबिचारि ॥९६ ॥ इति श्रीव्रतकथाकोशभाषा विषै विमानपंकतितपकीकथा संपूर्ण ॥ संवत् १८४८ का ॥ भादवासुदि । ६ । बार सोमवार ॥ दसकतहुकमचंदबीलालाका । तासीनीईक ।। दोहा॥ लिषतलेषलेषकसही ॥ चुक लघु दीरघ होय ॥ अषर पद भूलै सही । फेरि न देषै कोय ॥ १॥ तातै घट हीत पद रहै ॥ ग्रंथ दुसरौ होय ॥ सोध्यासुसोधोसही ॥ हम को दोस न कोय ॥ २ ॥ Then in a different hand
साहाजी श्रीरतनचंदजी तस्य ग्रहे भारज्याहरकुवरजी अदातवारमेलो उ भंडारमेल्यो भंडाः सुषं भवतु ॥त्रतकथाकोस चोहो उपो । मंदरचाऽ. सुके कोऽके नंदर । -
सेलो
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प्रतकथाकोशभाषा
Vratakathākośabhāsā
1554 No. 1105
1891-95 Size - 103 in. by 6 in. Extent – 118 folios; 17 lines to a page ; 32 letters to a line. Description - Country paper thick, tough and white; Jaina Deva
nagari characters; big, perfectly legible, uniform and very good hand-writing; borders ruled in two lines and edges in one, in red ink; numbers for the verses, their dandas and colophons of different kathās written in red ink; red chalk used; fell. numbered in the right-hand margin; fol. 1a blank except in the left-hand margin the title is written as व्रतकथा; condition excellent; complete.