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Tantra
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बहुम || अस्त्रं फट् । वह्निजाया स्वाहा । तथा पिप्पलादो मुनिः । प्रोक्तो निवृच्छंद उदाहृतम् ॥
भद्रकाली देवता स्यात् । पंचांगस्वयमेव तु ॥
स्वयमेव मूलमंत्र एवं मूलमंत्रेणैवेत्यर्थः । गन्घ्रकर्णि २ विरूपाक्ष ॥ २ ॥ हृदयाय नमः । लंवस्तनि नि || २ || महोदरि ॥ शिरसे स्वा | उत्पादय || २ ॥ बेत्तिः ॥ २ ॥ शिखायै वषट् ॥
सुन्दरीनित्यार्चनविधि
~No. 491
Size. 8 in. by 4 in.
Extent. 23 leaves ; 8-11 lines to a page; 34-44 letters to a line. Description.— Country paper; Devanagari characters; two handwritings; one bold on foll. 1-2 with 8 lines to a page and 34 letters to a line ; the others small with 11 lines to a page and 44 letters to a line; both good. Paper old and musty. Benedictory phrases, topic-heanding, topic endings and colophons tinged with red pigment.
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Sundarīnityārcanavidhi
Age.— Appears to be old.
Author.-- Trivikramānandanātha.
Begins. fol. 1
974.
1887-91.
The work is a part of a or written according to ज्ञानार्णवतन्त्र Following topics end on foll. noted against them. स्तुति 24 ; संध्या 21 ; षडंगानि 20 ; यागमंडपगमन 34 ; कलशस्थापन 3 ; भूतशुद्धि, प्राणप्रतिष्ठा 42; different न्यास's 124 ; योगपीठन्यास 144; ध्यान. 14 ; मुद्रा 15 * ; प्रधानपूजा 17 ; नवावरणपूजा 200 ; नीराजनविधि 214 ; बलिदान. After fol. 22 there is another leaf which is called us and on one side has page No. 17 and on another p. 18.
श्रीगणेशाय नमः ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीमूलपिठनिवासिन्यै नमः ॥ श्रीमार्तड भैरवाय नमः || श्रीमत्रिपुरसुंदर्ये नमः ॥
त्या कामेश्वरं रामं कामेशी शीतया युतं । ज्ञानार्णवानुसारेण सुंदर्यच निरूप्यते ॥ १ ॥