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Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts, Pt. XVI (Appenedix)
CLOSING :
श्लोक:
श्लोकः
परधनहरः पण्यायोषा तथा च पृथग्जन:, पुनरपि महामिथ्यावादी यदा पदवीमताः । तदिहपदवीदातालोके भवेत्पदवीच्युत, इति सुधिबरोमित्वं चितेनरः सुविभावयेत् ॥२॥
अर्थ-चौर १, वेश्या स्त्री २, कमीन ३ । यह तीन जने जद पदवी को पहुंचे तो इनको पदवी देने वाला अपनी पदवी से च्युत होता है ।
श्लोक:
श्रावालवनिता वृद्ध ेः स्मरणीयं पुनः पुनः ।
प्रातरारभ्य संध्यांत कियान्कालो वृथागतः ॥८॥
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अर्थ — बालक अरु स्त्री अरु वृद्ध सदा याद करता रहै । ज्यों प्रभात से संध्या तक कितना समय बुथा गया ।
शिक्षाष्टकमिदं दिव्यं श्रीशार्दूलनृपोत्तमः । संगृहीतं पठन्नित्यं भवेन्नीति
विदांबरः ॥
अर्थ-यह दिव्य शिक्षाष्टक श्रीमान् शार्दूल नरेश ने संग्रह किया है । इसको हमें सपाठ करने वाला नीति जानने वालों में अच्छा होय ।
संवत् १९५७ ज्येष्ठ शुक्ल १४ भौमे || श्रीमान् १०५ छोटे अन्नदाताजी साहब की सेवा में समर्पित होय । यह श्लोकाष्टक व्यास ब्रजवल्लभजी के बनाये हुए हैं । इति नीति शिक्षाष्टकम् । लिखितं ले० मथुरादासेन ।