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Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts, Pt. XVIII (Appendix) 515
CLOSING:
जो रक्खइ परदब्बं दिन्न रंग हु देइ चोरियं करइ । दिण्णं गिण्हंतो सो मरि दुब्भागिश्रो होइ ॥ २ ॥
OPENING
पररिरणवसेरण जो वो हिडइ सव्वत्थ दुखियो णिच्चं । नरयं गए छुट्टइ लहरणा देणीय संबंधं ||३||
परदव्व महापावं जो रक्खइ लहरणयं च रंग वि देइ । सो परभवम्मि गिण्हइ, पुत्ता जह माहरणा चउरो ॥४॥
रिग कस्सवि म धरिज्जहु, रिगाइ संबधश्रो भमइ जीवो । जह माहरण चउता, अवेयरिया पुव्ववं रेण || ५|| तथाहिसज्जरण घट्ट म दुज्जरण तरी, घरि कुकलत्त म वेसाधरी । भिक्खा भो म खवणहं चरी, सूनी साल म चोरह भरी ॥११०॥ .
वर सुपुत्त इक्कइ जि, पर मा कुपुत्त सयाई ।
कुल लज्जावहि धनहरहि, रोइ म तिन्ह मुयाह ॥। १११ ।।
संसालह एह सुप्रो जो प्रत्थि प्रत्थव्वणो चउत्थो य । इ कहिऊणं देवी गया, वियायास उप्पमियं ॥ ११२ ॥
इय माहरणपुत्ताणं संबंध जोइ ऊरण इय भविया । मा रक्खह कस्स रिणं, मा लहणं करह वित्त ं च ।। ११३ ।।
श्रानंदरायगुरुणा, सीसेणं श्रभयचंदगणिरणाए । माहरणच उपुत्ताणं कहा कियं ग्यार पनरसए (१५११) ॥११४॥
COLOPHON
इति रिसम्बन्धे गुण समुद्रब्राह्मणकथानकं समाप्तम् । Post-colophon : संवत् १६४१ वर्षे श्रावण वदि १२ शुक्र दिने 1
2058 / 7468 दीपमालिकाकल्प
[ पत्रांक २२ A से ] रवसंगीए ममीकर अहंकारंगीए अंतो सम्पज्जलंतबोंदी अहमहंत कयमाणे से प्रमुरिणयं समयं सब्वे गरणी भविसु एएणं प्रणं गोयमा ! से भयवं किणं सव्वेवि एवं विहे तक्कालं गरणीभविसु गोयमा ! गो तिरपट्टे