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मेल नहीं भी खाती है क्योंकि लिपिक इस संख्या को अनुमान से अथवा बढ़ा-चढ़ाकर अथवा परम्परागत शास्त्र वणित परन्तु वर्तमान में अनुपलब्ध है, वह लिख देते हैं । सूचीपत्र में दी हुई पन्नों की संख्या को दुगना करने से पृष्ठों की संख्या आ जाती है और उसे पंक्ति प्रतिपृष्ठ की संख्या से गुणा करने पर ग्रन्थ के कल पंक्तियों की संख्या आ जाती है और उसे औसतन अक्षरों की संख्या से गुणा करने पर ग्रन्थ के कुल अक्षरों की संख्या आ जाती है जिसमें 32 का भाग देने से ग्रंथान की संख्या आ जावेगी-इस प्रकार पाठक स्वयं ग्रंथान अनुमानित कर सकते हैं ।
साथ में यह भी बताया गया है कि प्रति संपूर्ण है या अपूर्ण या त्रुटक और यदि अपूर्ण है तो कितनी अपूर्णता है। यदि प्रति पूरे ग्रन्थ के एक अंश हेतु ही लिखी गई है और वह अंश पूरा है तो उसे 'प्रतिपूर्ण' कहा गया है। प्रथम या मन्तिम पन्ना बहुधा नहीं होते हैं तो प्रति को अपूर्ण न कहकर वैसी टिप्पणी लिख दी गई है कि पहला या अन्तिम पन्ना कम है । उपरोक्त परिमाण सूचक शब्दों के प्रथम अक्षर ही बहुधा सूची पत्र में लिखे हैं अतः तदनुसार अर्थ लगा लेना चाहिये-जैसे सं. =संपूर्ण, अपूर्ण, ग्रं =ग्रन्थान।
स्तम्भ 10-प्रतिलेखन वर्ष, स्थल व लिपिक :
इस स्तम्भ में प्रति के बारे में तीन प्रकार से सूचना दी गई है :
(i) सर्व प्रथम प्रस्तुत प्रति जिस वर्ष में लिखी गई है वह विक्रम संवत् दिया गया है । कदाचित् कहीं पर शक या
पौर संवत् या अन्य सार है तो वैसा विशिष्ट उल्लेख कर दिया गया है। विक्रम संवत् से शक संवत् व ईस्वी सन कमशः 135 और 56 कम होता है जबकि वीर सम्वत् 470 अधिक होता है, परन्तु बहुत सी प्रतियों में उनका प्रतिलेखन संवत् लिखा हुआ नहीं मिलता है । ऐसी अवस्था में अनुमान से वह प्रति जिस शताब्दी में लिखी प्रतीत हुई वह विक्रम की शताब्दी लिख दी नई है । यद्यपि अनुमान लगाते हुए हमने पर्याप्त अनुदार दृष्टि से काम लिया है (अर्थाद संदेहास्पद मामलों में प्रति को प्राचीन की अपेक्षा मर्दानीन टी बताने की ओर झुकाव रहा है) तो भी अन्दाज तो अन्दाज ही है । अतः पाठकों को सलाह है कि हमारे इस अन्दाज को ठोस आधार न मान लें। भिन्न-भिन्न वर्षों में लिखित प्रतियों की प्रविष्टि जब एक साथ ही गई है वहाँ कालावधि की सीमायें व यथा योग्य सूचना दे दी गई है।
(i) दूसरी सूचना प्रति किस स्थल में लिखी गई है उसकी है और
(iii) तीसरी सूचना लिपिक के नाम की है
स्तम्भ 11-विशेषज्ञातव्य :
उपरोक्त सब के अलावा अन्य अथवा प्रति के बारे में जो भी सूचना देना उपादेय या आवश्यक समझा गया है उस वास्ते इस स्तम्भ की शरण ली गई है। यह तरह-तरह की जानकारी से भरा गया है और इसका अवलोकन किये बिना प्रविष्टि पूरी देख ली है ऐसा नहीं कहा जा सकता । इस स्तम्भ में दी गई जानकारी के कतिपय उदाहरण हैं-चित्रित, संशोधित, अपठनीय, जीर्ण, प्रथम आदर्श, ताड़पत्रीय या वस्त्र पर, देवनागरी से भिन्न लिपि, स्वर्णाक्षरी, ग्रन्थ का दूसरा प्रचलित नाम, प्रशस्ति है, वृत्ति आदि का नाम जो अक्सर वृत्तिकार अपनी कृत्ति को देते हैं, साथ में गौण वस्तु जो संलग्न हो मादि-2 ।
उपरोक्त स्तम्भों के अतिरिक्त सरकारी निर्धारित प्रपत्र द्वारा चार अन्य स्तम्भों की अपेक्षा की गई। जो निम्न प्रकार है :
(1) प्रति किस पर लिखी गई है :-कागज, ताड़पत्र, भोजपत्र, कपड़ा आदि ।