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Ends - fol, 23b
Jaina Literature and Philosophy
पई ॥
शिषरबद्ध दससह सप्रासाद ॥
कनककलसधजनरवइनाद ॥ 'गोदावरी 'नु निर्मल नीर ।
पुरु' पहिठाण' बसई तसु तीर ॥ २ ॥ etc.
Reference
धर्मलाभइ अविचल शर्म ॥ जइ पुण्य छांडउ पापं जि कर्म ॥ देव आराहु जिणवर नाम ॥ दुष तणउ जे फेउइ ठाम ॥ ३० ॥ भवर देवऽजड पूजइ पाय । जिण पूजइ देह निर्मथाइ ॥ जिणवर वोलिउ धर्म्म ते करउ | पाय रेउ जिम हलां दरउ ॥ ३१ ॥
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गुणवंत गुरुपाय अणसरु | मुक्तिपुरी मांहे अणसरु ॥
पुर' पहिठाण यादववंश ॥ वर्णवाया वत्सराज नइ हंस || ३२ ।
इति श्रीहंसवत्सकथायां चतुर्थषंड समाप्त संवत् १६५९ वर्षे भद्रवा सूदि ९ दिने रिषि - श्री उदयचंद्रशिष्य - ऋषिमनोहरलिषतं । 'नादसमा'मध्ये
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सकल लोक राजा रंजनी । कुलयुगकुथाउत्तइ वावनी ॥
गाद्दा दुरु वस्तु चउपई || सुजिस्यई च्यारि बन्रीसइ जूअली
त्रिण सह विसाल | तीणा मोहमाया जाला । सुणतां दोषदरीद्र सविटलहूं ॥ भई असाइत तिह अफलां फलई ॥ ३४ ॥
For extracts and additional MSS, see Jaina Gurjara Kavio (Vol. I, pp. 46 47 ).
हंसराज - वत्सराजचतुष्पदी ( हंसराज वत्सराज चोपई )
No. 874
Size - 11g in by 44 in.
Extent – 30 folios; 14 lines to a page; 44 letters to a line:
Hamsarāja-Vatsarāja-catuspadi (Hamsarāja-Vatsarāja-copai
Description - Country paper thick, tough and white; Jaina Devanagari characters; big, quite legible, uniform and very good handwriting; borders ruled in two lines in red ink; dandas and
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1383
1886-92
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