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________________ 368 Jaina Literature and Philosophy [396. 15 Beging.-- (stavana XIV ) fol. 6a 'पुक्खरवई' दीवे होके वीचरे तीर्थपती। प्रभुचरणने सेवो होके सुरनरअसुरनती । जस गुण प्रकट्या होकिं सर्वप्रदेशसमा। मातमगुणनी होकि वीकसी अनंत रमा। १। सामान्य सभावन होकि परणति असहाइ। धर्मवीशेषनी होके गुणने अनुजाइ । गुण सकल प्रदेशे होकिं निज निज कार्य करे । समुदायप्रवृत्ते हो किं करता भाव धरे । २ । etc. 10 Ends.-- ( stavana XIV ) fol. 64 ग्राहकव्यापकता होकि प्रभु नु (तु) म धर्म रमी । आतमअनुबवथी होकै परणति अन्य वमी । तुझ सकति अनंत । होकि ग्वताने ध्यातां । मुझ सकतिविकास । न होकिं थाए गुण रमतां । ६ ॥ इम निजगुणभोगी होकि स्वामी भुजंग मुदा । जे नित्य वंदे होकि ते नर धन्य सदा। देवचंद्र प्रभुजीनी होकिं पुन्ये भगति सधैं । भातम(अ)नुभवनी होकि नित नित सक्ति वधे । ७ ॥ ॥ इति श्रीभुजंगजिनेंद्रस्तवन ॥ १४ ॥ 20 Begins.- (stavana XV) fol. 60 ढाल अनंतानंत ए देसी। सेवो इ(ई)श्वरदेव । जिणे इ(ई)श्वरता हो निज अदभुत वरी। तीरोभावनशक्ति आवीर्भावे हो सहु प्रगटी करी। १ । अस्तित्वादिक धर्म निर्मल भावे हो सहुने सर्वदा । नित्यत्वादि स्वभाव ते परणामे हो जड चेतन सदा । २ । etc. Ends. - ( stavana XV ) fol. 66 वारंवार जिनराज ! हो तुझ । पदसेवा हो होज्या निरमली । तुझ सासन अनुजाइ । वासन भासन हो तत्वरमण वली । ७ । सुद्धातम निज धर्मरुचि अनुभवधी(थी) हो साधन सत्यता। देवचंद्र मुनिचंद्र भक्ते पसात्ये हो होस्ये त्यक्तता ॥ ८॥ ॥ इति इ(ई)स्व(श्व)रजिनस्तवनं ॥ १५ ॥ etc. 25 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018042
Book TitleDescriptive Catalogue of Govt Collections of Manuscripts Part 2 Svetambara Works
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal R Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages442
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size15 MB
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