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Jaina Literature and Philosophy [538. -fol. 47" इति श्रीरामायणे सीतासोधन केकीधा नाम कांडश्चतुर्थः ४ ॥ - fol. 57b इति श्रीरामायणे सुंदरकांड गणिविद्याकुशल रगमानविर
चिते सुंदरकांड पंचम संपूर्ण ॥५॥ - fol. 89. इति श्रीरामायणे रावणवधः राम अजोध्याआगमन लंकाकांढ
षष्टम संपूर्णम् ॥ Ends.- fol. 99a
च्यार पदारथ श्रोताकर चढे लोक उभय भव साध विद्याकुशल श्रीराघव गावतां जन्म सफल भव लाध व० १४ संवत सतरै सय ईकांणवै (१७९१) आसू मास उदार सुदि दशमी तिथि सुरगुरुवासरै पूरण ग्रंथविचार व० १५ चोरासी गच्छ पुहवीपरगडा ‘परतर' गणि परमाण पष्पा आचारिज गच्छनायक भला लहीयै जुगपरधान प(व ?). १६ श्रीजिनमांणिकसूरिना पाटवी श्रीजिनचंद्रसूरिंद गुण छतीस विराजै जेहमै विजयमांन दिणंद व० १७ भट्टारिक मणिधारी जस धणी श्रीजिनहर्षसूरीस तास प्रथम सिष्य 'पाठक' पदधरा सुमतहंस सुजगीस व० १८ तशिष्य उवझायै पद सोभता मतिवर्द्धनं मत्तिवंत तेहना सिष्य दीपक सम जांणीयै व्र(ब्रह्मचारी सतवंत व० १९ श्रीआनंदनिधांनपसाय लै तसु सिष्य चारतधर्म विद्याकुशल ऊभै मिली गावीयो पांमी वंछित मर्म व० २० देस सवलष मंहि दीपतो लवणसुरै सुष पाई चैत्यालय कुंथ(थु)नाथनी सांनिधै एह कह्मौ जस गाइ व० २१ चोपइ सरस बंध ए रच्यो भलै करो सुकंठी रे गांन मनवंछित लीलासंतति लहै कुशल मंगल कल्याण व० २२ जे नरनारी इकचित प्रीतिसं सुंणै रामायणसार इहलोक परभव सुष लहीयै घणा कविजन करोजी विचार व० २३
इति श्रीरामायणे नगरअयोध्याउद्धरणश्रीरांममहाप्रस्थानसीतादिक्षापरलोकनो नाम उत्तरकांड सप्तम संपूर्ण ॥ ७ ॥
सं १९२२ मिति पोह ब्द(वद) १० चतुर्थ प्रहरे लिक्षो फूलचंद
ग्रांम भावी'मध्ये चतुर्मास कीनो श्रीपार्श्वनाथजीप्रसादात् ॥ Reference. It seems that this work is not noted in Jaina Gurjara
Kavio.
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