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Jaina Literature and Philosophy
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Ends.- fol. 42
ए अधिकार कह्यो गुणरागें ॥ वैरागें मन भावी ॥ वसुदेवहीडं तणे अनुसारें ॥ मुनिगुणभावन भाबी रे॥ १३ ॥
अनुभव आतमचों॥ मुनिगुण थुणतां भाव विसुद्धे ॥ भवविछेदन थावें ।। पूर्णानंद ईहाथी उलस्य ।। साधन सकति जमावे ।। १४ ॥
अनुभव आतम ॥ मुनिगुण गावो भावना भावो ।। ध्यादो सहज समाधि ॥ रतनत्रयी एकत्यें पेलो ॥ भेटी अनादि उपाधि ॥ १५ ॥
आ(अ)नुभव आतमचो॥ राजसार पाठक उपगारी ॥ ज्ञाता धरमद(दा)तारी ॥ दीपचंद पाठक 'परतर'वर ।। देवचंद सुषकारी ॥ १६ ॥
अनुभव आ। नयरे लींबडी मांहिं रहीनें ॥ वाचंजमस्तुति गाई । आतमरसीक श्रोता जन मननें । साधनरुचि ऊपजाई ॥ १७ ॥
अनुभव आ ॥ इम उत्तम गुणमाला गावो। पावो हर्ष वधाई ॥ जे जैन धरम मारग रुचि करतां ॥ मंगल लील सदाई ॥१८॥
_अनुभव आतमचो आयो॥ इति श्रीप्रभंजनाचोपई संपूर्ण ॥ गुमांनांपठनाथ ।। श्री उदयपुर'
नगरे श्रीऋषभजिना(प्र)सा(दा)त् Reference. This work is not noted by this name in Jaina Gurjara
Kavio. It is, however, named as प्रभञ्जनासझाय. Two extracts are given in Jaina Gurjara Kavio ( Vol. II, p. 492 ). For additional Mss. see this page as well as Vol. III, pt. 2, p. 1419.
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Prabhāvakacarita
प्रभावकचरित [ पूर्वर्षिचरित्र ]
No. 418 Size.- 8 in. by I3 in.
[ Purversicaritra ]
411. 1879-80.
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