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________________ 19.] The Svetambara Narratives Begins.- fol. " पुणंतु ते मो अमुराइया सुरा जे चि(वि)तरा जोइमिया य देवा बेमाणीया कप्पगयकप्पतीया । जे संति सम्मतविमुद्धचित्ता १ नामारिहते उषणारिहते दम्बारिहंते जिणसासणंमि हीलंति मन्नंति न पूणिजे नमनिया भावजिणा वि तेहिं २ etc. -fol. . अंगमि एवं पढमंमि वुत्तं पुणो दसाणज्झयणे(5)द्वमंमि। अंगमि छ;मि य तेण देवा नमा(मि बुद्धा । णयबोहगाणं सोचएसेण जिणा सुराणं बुझंति मुज्झति न ते सहेहिं जेट्रेण तम्हा गुरुकारणेणं पाला भाणिज्जति कहंतु देवा ढाल इम वोल्यउ छइ उदृइ अंगि सोहम गणधरि मनना रंमि तेतलिपुत्र मंत्रि बोडियउ कनकध्वज राजा मोहियउ ९ Ends.- fol. 5. इह कारण कोई जे हुस्यइ गीतारघ(थ) समरघ(थ) जाणिस्पर्ड से पूछी आणियइ विवेक जिनमत थइयइ सहुअइ एक ७२ साधु श्रावक सुर इक हुँति श्रुत धर्मि जिनप एम कहंति चरणधर्मि अंतर चहारि जोर्ड लेज्यो सूत्रविचारि ७३ जिनशासनि निंदा टालिज्यो जिणवरआण परी पालिज्यो पासचंद्र ए करई बीनती संभलिज्यो सहअह जिनमती ७४ इत्यमरद्वासप्ततिका समाप्तः ॥ ७॥५॥७॥ नीर नरण्य कवण ? । कमरिपु कवण भणिजद। कुण सोहा सुरमज्झि ? सुगुण माणासि स्यउं किज्जा ?। नर बहु पीडइ कवण ? । नदी सायर कुण तारह?। गिभित्तिनी य सत्ति वलिय वलि कवण वधारह?। सप्त श्रोणि बिडं वर्णनी पहलुउं अक्षर जेहनउ । नाम प्रकट हुण्इ हरप धरि कर सिरण हुं तेहनउ । पाल १ तप २ इंद्र ३ शांति ४ तिस ५ नाव ६ ध(थ)र ७ ।। हस्तलतप्रमाणं उ । यो भूमि कर्षयेदिजः [I.L.P.] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018041
Book TitleDescriptive Catalogue of Govt Collections of Manuscripts Part 1 Svetambara Works
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal R Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages480
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size17 MB
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