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________________ 23. The Svetāmbara Narratives 307 10 15 बालब्रह्मचारी हवो इण सम अउर न कोहरे॥ नाम जपंता एहनो मनबंछति सुष होइ रे ॥२॥०॥ आज दिवस धनि माहगे आज सफल अवसारो रे॥ चिंतामनी सुरतरु फल्यौ मै गुण गाया इक तारो रे ॥३॥०॥ परिशिष्टपर्वर्थ(थी) ऊधरिउ एह सह अधिकारो रे॥ केवलग्यानीय इं भाषीयो इहां कूड नही लगारो रे ॥ ४॥ ज०॥ सरदहिजो सूधइ मनै मत करिज्यो कोइ संदेहो रे॥ संदेह करिसइ ज सहा (ही) ते दूरगति लहै निसदेहो रे ॥५॥ ज०॥ संवत्त सतरिसै चौधोतरे (१७१४) काती मास उदारो रे ।। सुकल पक्ष तेरसि दिने ए कीयो चरित सुविचारो रे ॥ ६॥ ज०॥ सरसा 'पाटण' परगडो जिहा श्रीआदिजिणंदो रे॥ तेह तणे परसादीं ग्रंथ कीयो आणंदा रे ।। ७॥ ज०॥ श्री स्वरतरगच्छराजीयो श्रीजिणसिंहसुरंदो रे ॥ गच्छ चोरासी सेहरो हूया जाणि दिणदो रे ॥ ८॥०॥ पातसादि अकबर राजितइ 'कासमीर देस मझारो रे ।। अमारी पलावी तिहां कणइ सर्व जीवां हितकारो रे ॥९॥ ज० ॥ दं(दे)स चौपडे रवी समो। चांपसी सुत्न सिरदारो रे ।। चांपलदे धन जनमियो । पुरुषरतन गणधारो रे ॥१०॥ ज० ॥ तसु पाटे सुरतरुसमो। श्रीजिनराजसुरीसोरे॥ सकलपाटप्रभाकर दीपतो। जाणे विसवा वीसो रे ॥११॥ ज०॥ तस लघु बंधव दीपतो । पदमकीरति सुषकारो रे ।। तासु सीस गुणे विलौ । आगमना भंडारो रे ॥ १२ ॥ ज०॥ चवद विद्या करी सोभता । महिमा 'मेर' समानो रे।। पदमरंगगुरु चिरंजीवो । जां लगि ध्रु ससि भानो रे ॥ १३ ॥ ज०॥ पदमरंग मुनिवर केहै । ए सबंध रसालो रे । जे नरनारी सांभलै । तिहां घ(र)घरि मंगलमालो रे ॥ १४ ॥०॥ वर्तमानगच्छराजीयो । श्रीजिणचदरिंदो रे ॥ कीरति महीयल विस्तरी । प्रणमै नरना वृंदो रे ।। १५ ।। ०॥ तेह तेणे वार करी | चौपई मोहनबेलो रे॥ चतुरांगन मोहण भणी । कीधी मननी केलो रे ॥ १६ ॥ ज०॥ भणजां गुणतां पहने । लहीयै लीलविलासोरे॥ सांभलतां रिद्धि सिद्धि हवइ । सफल होवे मन आसोरे॥१७०॥ नरनारी भो(भा)वे करी । जे प्रगम निसदीसो रे।। इणि भव जस सोभा लहै । बलि प्रभवे संघ जगीसो रे ॥१८॥ ज० ॥ 20 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018041
Book TitleDescriptive Catalogue of Govt Collections of Manuscripts Part 1 Svetambara Works
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal R Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages480
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size17 MB
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