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The Svetāmbara Narratives Subject.-- 24 couplets in Gujārati dealing with various topics. Begins. - fol. 490
___ हरघरणी जउ निघरी हुई । गउरी कन्हलिगो हिंगइ।
बोलइ सुधि पूछंती बाड । हाम् करती भांजइ हाड ॥१॥ Ends. - fol. 50
कोठी धोता कादव थाइ । हरि हर विचि इंम पाडइ राओ ।
निवण वारू नारदि कोडं । वरसंग भणइ भलं थीउ ।। २४ इति चउचइ।
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चतुर्विशतिजिनचतुर्विधसङ्घ- Caturviinsatijinacaturvidhasanghaसङ्ख्यागीत
sankhyāgita No. 199
1604 (b).
1891-95. Extent.-- fol. 132.
8 1604 (a). Description.-- Complete. For other details see No. :
• 1891-95. Author.- Not mentioned. Subject.- A small poem in Gujarati. It mentions the numbers
of Jaina monks, nuns, Śrāvakas and Śrāvikās of the 24 Tirthankaras of the present avasarpiņi who flourished in
Bhāratavarşa ( India ). Begins & Ends.-fol. 13'
चउबीस तीर्थकरनउ परिवार चबदइ सइ बावन गणधार। लाष अट्ठावीस सहस अडयाल ए मुनिवर बंदो त्रिणि काल ॥१॥ च्यारि सइ छडोत्तर सहस छयाल लाष चउमालीस गुणह विसाल । भगवति जिणशासणि कही प्रह ऊठी नित वंदन सही ॥२॥ पंचावन लाष ए श्रावकसार सहस अठतालीस अतिहि उदार । व्रतधारी ए तासू विचार एतला श्राविक समकितधार ॥३॥ श्राविका तणौ परमारथ लह्यो सहस अडत्रीसा प्रवचन कह्यौ । पांच लाष नइ एक ज कोडि ए श्राविका नमूं कर जोडि ॥४॥ चउविह संघ तणौ ए सार मइ कह्यउ गुरुनइ आधार । तेह तणा नित लीजै नाम कर जोमी(डी) नु (हुँ) करूं प्रणाम ॥ ५॥ इति चतुर्विशतिजिनानां चतुर्विधसंघसंख्यागीतं ॥
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