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The Svetāmbara Narratives
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Begins.- fol. 5 ॥ ६॥
'चंपा' न(य)री अतिभली हुं घारी (द)धीवाहन ल(भू)पाल रे हूं वारी लाल पदमावती कुष उपन हु
कमें कीधउ चंडालरि हुं० etc. Ends. - fol. 7a
उत्राध्येयन्मइ ए कह्या सुत्र मांही हे च्यारे प्रत्ये)कवुध । स्म(समय)सुदर कहसइ साधना गुण गायहि 'पाटणा नगर प्रसिद्ध)
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इति श्रीचार प्रत्येकबुधनी ढाल ५ संपूर्ण ॥ Reference.- Published in “ समयसुन्दर-कृति-कुसुमांजलि " on pp.
267-275.
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चतुर्गतिभवस्वरूपविज्ञप्ति Caturgatibhavasvarūpa vijñapti No. 196
825 (b).
1892-95. Extent.- fol. 24 to fol. 3". Description.- Complete. For other details see Caturdasasvapna
vicāra No. 197. Author.- A devotee of Amolaka. Is he Sukhasāgara ? Subject.-- A Gujarati poem pointing out the nature of births in
the four grades of existence. Begins.- fol. 2 ॥ ६ ॥
त्रिभुवनतारण देव | सेव करइ नित सरगभुवनना राजीआइ |
जिनवरपाय नामवि सासणदेवति सामणि मनि धरू ए ॥१॥ etc. Ends.- fol. 3
श्रीजिनशासन माहि । रत्न अमुलिक सूरि पसाइ पामीइ । अमरित वटडउ मेह । नव पल्लव थई धरम तणी सवि वेलडी ए । सुरतरु फलीउ आज । राज करुं नितु सुखसागर माहे झीलतां ए ॥२४॥ इति चतुर्गतिभवस्वरूपानती संपूर्णः ।।
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33 [J. L, P.]
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