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180.] The Svetārbara Narratives
233 Author.- Nayasundara, devotee of Bhānumeru Gani. His additional works are as under:
(a ) Narratives (1) नलदमयंतीचरित्र v. S. 1665 (2) प्रभावतीरास
V. S. 1640 (3) यशोधरनृपचोपद V. S. 1618 (4) रूपचंदकुंवररास V. S. 1637 (5) शत्रुभयमंडणतीर्थोद्धाररास V. S. 1638 (6) शीलशिक्षारास V. S. 1669 (7) सुरसुन्दरीरास
V. S. 1646
(b) Hymns (1) शंखेश्वरपार्श्वनाथस्तवन ? (2) शान्तिनाथस्तवन
?
(c) Miscellany (1) आत्मप्रतिबोध Subject.— A poem in Gujarāti pertaining to mount Girināra
_____in Saurāstra. Begins.- fol. !" ५ ६ ॥
वस्तु सयल वासव सयल वासव वसि पयमूलि । नमु निरंतर भाक्तिभर संतिकरण चुवीस जिणवर । नेमिनाह बावीस सुसीलरयाणभंडार सुहकर । तसु पयपंकि अणुंसरी ए महिमा गिरि 'गिरिनार।
सहि गुरु आयस सरि लही बोलिस किंपि विचार ॥१॥ etc. Ends. - fol. 98
भीधनरत्नमरिंद गुणाधिप । 'वडतपगच्छश्रृंगार | अमररत्नसूरिपाठ(ट)प्रभाकर | श्रीदेवरत्न गुणघार रे । जग ७६ विबुघसरोमणि भानुमेरगणि सीस धरी आणंद । श्री दधिग्राम' माहि दुषभंजन । वीनविड़ नेमि जिणंद रे ।। जंग ।। ७७॥ करु क्रीपा नयसुंदर ऊपरि । दिउ प्रभु शविरसाथ ।
होयो संघ प्रतिई शुभदायक । सुप्रसन नेमिनाथ रे । जग। ७८ । 30 [J. I. P.1
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