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The Śvetāmbara Narratives Ends.--- fol. 350
कवियणवचने रचना कीधी सरस चोपई ए लीधी जी मिच्छादुकड अधिक उछ में दो(दी)धो शुभ सोंचे जी ९४० संबत सत्तरसें इकवीसें (१७२१) 'बीकानेर' सुजगीसे जी आदीसर मूलनायक सोहे भविकलोकमन मोहें जी १० घ. ए संबंध रच्यो मानहित कानें श्रीजिनचंदसरीराजे जी भणतां गणतां बहु सुष थाई संणयो चित लगाई जी ११ ध० श्रीजिनभद्रसरी सुषदाई सुरतरूसाषिकदाई जी वाचक श्रीनयरंग विष्याता वडवडा जस अवदाता जी १२ ध० विमलविनय तस शीस विराजे वाबि(च)क अधिक दिवाजें जी 10 श्रीधरममंदिर वयरागी तासु शीस बहभागी जी १३ धन महोपाध्याय पदवी सोहें संघ तणां मन मोहें जी मुगुरु 'पणिसकल सुभ नामें जांणीता लसवाणे जी १४ ध० तास शीस श्रीजयरंग बोलें नही कोइ दान तोलें जी दान तणां फल दीसे चावां दिन दिन अधिक दिवाजे जी १५ ध० 15 सरस ढाल न कोई पडती तीस उपरि एक चडती जी पूरी संणतां हीयडो विकस्पें धरम करम मन ऊलसें जी १६ ध.
इति कयवनानी चोपईः ॥ संपूर्णः ।। संवत १८१५ वर्षे जेष्टसूदि६दिनेः वारसोमेः ॥ ॥ कपूरविजयगणिः श्रीः तत्सीष्यलालविजय
लपीकृतं पालणपूरग्रामः ॥ Reference. - For a list of additional Mss. and extracts from one
of the Mss. see Jaina Gurjara Kavio ( Vol. II, pp. 165-168 ). On p. 165 this work is named as "कयवन्ना शाहनो रास".
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कयवनाचतुष्पदी
Kayavannācatuspadi
340. No. 107
1871-72. Size. - 91 in. by 4g in. Extent. - 24 folios; 15 lines to a page : 34 letters to a line. Description.- Country paper somewhat thick, tough and white;
Jaina Devanāgari characters ; big, quite legible, uniform
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1 This ought to be पुण्यकलश.
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