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Jaina Literature and Philosophy
Begins.-- fol. 1 श्रीशांतिनाथाय नमः ॥ श्रीवर्द्धमाना (न) जिननायक एवं सत्यं (प्रा) भातिकः किल सहस्रकरोति ? विभाति ( ? ) किरण प्रसारैः प्रकाशः
स जायतें सकलवस्तुबी (वि) काशदक्षः १
श्री सोमसुंदरगुरून भक्त्या श्रीरत्न से ( शे ) ष ( ख ) रगुरूंश्व श्रीमत् 'तप' गणेंद्रान नत्वा श्रुतदेवतां चैव २
श्रीमदावश्यक स्यादा(दो) पीठि (ठि ) का ( कां) विवृणोम्यहा ( हं ) बालावबोधरूपेण बह्वार्थामल्पसूत्रिकां ३ etc.
श्रीभद्रबाहु स्वामी श्री आवश्यकने धुरे पहेलं मंगलीक भणी पांच ज्ञांन वषाणे छे. आभिणी (णि) बोही (हि ) यनाणं० आभिनीबोधीक ज्ञांन कहts etc.
fol. 64 श्री शांतिनाथाय नमः
भव्यानामुपदेसा (शा) य मार्गे वचनका कथ्यते तत्र प्रथम जीव अनादि कालनो मिथ्यात्वी हतो ते हवें काललब्धि पामीनें त्रण्य कर्ण करें छें
etc.
Ends. fol. 134 तीम श्रुतज्ञांन आपणुं ए अर्थ प्रकासे अनें अनेरा ए ज्ञांननोऽर्थ प्रकासें ईस्यूं जांण ८०
'प्रथमावर रिका
( पढमाबवरिया)
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इति श्री सोमसुंदरक (यु) गोत्तमसूरीष्पीष्य संवेग देवगणीना ग्रथीता ग्रंथ ai श्री आवश्यक पीठीकाबालावबोध संपूर्ण संवत् १८७२ ना वर्षे श्रावण शुद ७ गुरौ दिने लीपीतं पं (०) न्याय सागरगणीना स्वात्मार्थे 'महीज'ग्रामे श्रीसांतिनाथप्रसादात् भद्रं भवतु श्रेयं. स्वात्मार्थे(s) लेखि.
N. B. -- For other details see No. 1014.
No. 1016
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[1015.
Prathmavaravarikā (Padhamāvaravariya )
Extent.- fol. 34 to fol. 64.
Description.-- Complete. For other details see No. 1011.
1 This is also styled as Laghuvaravarikā See. p. 391.
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273 (c).
A. 1882-83
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