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Jaina Literature and Philosophy
1730.
Page-No. 1466 to 1530 153", I540 1558 , 1582 158 ,, 160 1603 ,, 163° 163
1626
" 164
1746
, 1800
174 181a 1813
, 1824
(4) नमुत्थु णं (5) अरिहंतचेइयाण (6) चतुर्विशतिस्तव (7) श्रुतस्तव (8) सिद्धस्तव (9) वैयावृत्त्यकरसूत्र (10) जय वीयराय (II) सुगुरुवन्दनसूत्र (12) सव्वस्स वि (13) गुरुक्षामणासूत्र (14) नमस्कारसहितप्रत्याख्यान
(नवकारसी) (15) पौरुषीप्रत्याख्यान (16) पूर्वार्द्धप्रत्याख्यान (17) एकाशनप्रत्याख्यान (18) आचामाम्लप्रत्याख्यान (19) अभक्तार्थप्रत्याख्यान (20) पानकाकारमूत्र (21) दिवसचरमभवचरमप्रत्याख्यान (22) विकृतिप्रत्याख्यान (23) वंदित्तुसूत्र (24) आयरिय उवज्झाए (25) श्रुतदेवतास्तुति (26) क्षेत्रदेवतास्तुति
184 186 1874 ,, 1870 1870 188
, 1880
1880
189 1894 ,, 189 189° 2232,, 234 234 , 235 235 235
1 "This is as under:
"पाणस्स लेवाडेण वा अलेवाडेण वा अच्छेण वा बहलेण वा ससित्थेण वा असित्येण वा
वोसिरइ." 2 It runs as under :
"सुयदेवया भगवई, नाणावरणीयकम्मसंघायं
तेसिं खवेउ सयय, जेसिं सुअसायरे भत्ती ॥१॥" 3 This is as follows :---
"जीसे खित्ते माह, दसणनाणेहिं चरणसहिएहिं ।
साहंति मुक्खमग्गं सा देवी हरउ दुरिआई॥ १॥"
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